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Uniform Civil Code, नई दिल्ली: देश में अक्सर समान नागरिक संहिता का मुद्दा उठता रहता है। आज स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर एक बार फिर पीएम ने इसका जिक्र किया, जिसके बाद से राजनीतिक गर्मागर्मी शुरू हो गई है।
ऐसे में आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि सेकुलर सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता है क्या और इसके लागू होने पर भारतीय अल्पसंख्यकों के जीवन में क्या बदलाव होगा? हम आपको इसकी पूरी जानकारी देंगे।
समान नागरिक संहिता का मतलब है सभी धर्मों के लिए एक समान कानून। अभी सभी धर्मों में शादी, तलाक, गोद लेने, विरासत, संपत्ति से जुड़े मामलों के लिए अलग-अलग कानून हैं। अगर समान नागरिक संहिता आती है तो सभी के लिए एक कानून होगा, चाहे वो किसी भी धर्म या जाति से संबध रखते हों।
विवाह की आयु: कानूनी तौर पर विवाह तभी वैध माना जाता है जब लड़की 18 वर्ष की हो और लड़का 21 वर्ष का हो। सभी धर्मों में विवाह के लिए यही आयु वैध है। लेकिन मुसलमानों में 15 वर्ष की उम्र में भी लड़कियों का विवाह कर दिया जाता है। यूसीसी लागू होने पर मुसलमान 15 वर्ष की उम्र में लड़कियों की शादी नहीं कर सकेंगे।
बहुविवाह: हिंदू-सिख-ईसाई-बौद्ध-पारसी और जैन धर्मों में केवल एक विवाह की अनुमति है। दूसरी शादी तभी की जा सकती है जब पहली पत्नी या पति तलाकशुदा हो। लेकिन मुसलमानों में पुरुषों को चार बार विवाह करने की अनुमति है। UCC आने पर बहुविवाह पर रोक लग जाएगी।
तलाक: हिंदू धर्म समेत कई धर्मों में तलाक को लेकर अलग-अलग नियम हैं। तलाक के आधार अलग-अलग हैं। तलाक लेने के लिए हिंदुओं को 6 महीने और ईसाइयों को दो साल तक अलग रहना पड़ता है। लेकिन मुसलमानों में तलाक के लिए अलग नियम है। UCC आने पर यह सब खत्म हो जाएगा।
गोद लेने का अधिकार: मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार मुस्लिम महिलाएं बच्चा गोद नहीं ले सकती हैं। यूसीसी आने के बाद उन्हे बच्चा गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा।
संपत्ति का अधिकार: हिंदू लड़कियों को अपने माता-पिता की संपत्ति में समान अधिकार है। लेकिन अगर कोई पारसी लड़की दूसरे धर्म के आदमी से शादी करती है, तो उसे पिता की संपत्ति से बाहर कर दिया जाता है। यूसीसी लागू होने के बाद सभी धर्मों के लिए संपत्ति के बंटवारे का एक ही कानून होगा।