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Direct Action Day: अगस्त यानी आजादी का महीना। आपको 1947 में ले चलते हैं और सुनाते है आपको आजादी के महीने के वो भयानक कहानी जब बंगाल साम्प्रदायिक हिंसा की आग में जल रहा था। आजादी के अगले ही दिन यानी 16 अगस्त 1947 को बंगाल के नोआखानी में मुस्लिम नेताओं ने 'डायरेक्ट एक्शन डे' का ऐलान किया। मुसलमानों की भीड़ ने हिंदुओ को चुन चुन कर मारा और कई महीनों तक दंगे चलते रहे।
दंगो में जिंदा बच गए रबीन्द्रनाथ दत्ता ने 1947 की तस्वीरों को बयां किया, जिसे सुनकर आपको रूह कांप जाएगी। पत्रकार अभिजीत माजूम ने इसका एक वीडियो एक्स पर साझा किया है।
रबीन्द्रनाथ दत्ता ने बताया कि विक्टोरिया कॉलेज में पढ़ने वाली कई हिंदू छात्राओं के साथ बलात्कार किया गया, उनकी हत्या की गई और उनके शवों को छात्रावास की खिड़कियों से लटका दिया गया। रवींद्रनाथ दत्ता ने हिंदुओं के क्षत-विक्षत शवों को अपनी आंखों से देखा है। जमीन पर खून की धारा बह रही थी, जो उनके पैरों के नीचे भी बह रही थी। इनमें कई महिलाएं थीं, जिनके शरीर से स्तन गायब थे। उनके गुप्तांगों पर काले निशान थे।
डायरेक्ट एक्शन डे पर शुरू हुए दंगे चार दिन तक चले और करीब दस हजार लोग मारे गए। महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया। इन दंगों में हिंदुओं की ओर से गोपाल चंद्र मुखर्जी जिन्हें गोपाल पाठा के नाम से भी जाना जाता है, की भूमिका की कहानी बहुत मशहूर है। गोपाल मुखर्जी ने एक वाहिनी का गठन किया था जिसने इन दंगों के दौरान हिंदुओं की रक्षा की और वाहिनी ने इस तरह से लड़ाई लड़ी कि 'मुस्लिम लीग' के नेताओं को गोपाल मुखर्जी से रक्तपात रोकने का अनुरोध करना पड़ा।
गहने बेच कर किताब लिखी
रवींद्रनाथ दत्ता ने दुनिया को अपने अनुभव बताने के लिए 'डायरेक्ट एक्शन डे', नोआखली नरसंहार और 1971 के नरसंहार पर दर्जनो किताबें लिखीं। अपनी पत्नी की मौत के बाद उन्होंने इसके लिए पैसे जुटाने के लिए उनके गहने बेच दिए। दुखद है कि बंगाल के किसी भी नेता, फिल्मी हस्ती या मीडिया को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है।