India US BTA: भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) को लेकर भारत ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। सूत्रों के अनुसार, भारत खास तौर पर तकनीकी क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने की रणनीति बना रहा है और अमेरिका से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और चिप प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में बराबरी की मांग कर सकता है। यह कदम दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
व्यापार समझौते की प्रगति
भारत और अमेरिका ने फरवरी 2025 में इस व्यापार समझौते की पहली किश्त को सितंबर-अक्टूबर 2025 तक अंतिम रूप देने की घोषणा की थी। हाल ही में, दोनों देशों ने 19 अध्यायों को कवर करने वाले संदर्भ की शर्तों (ToR) को अंतिम रूप दिया है, जिसमें टैरिफ, गैर-टैरिफ बाधाएं, सीमा शुल्क सुविधा और नियमों की उत्पत्ति जैसे मुद्दे शामिल हैं। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि नई अमेरिकी सरकार के साथ बातचीत सक्रिय रूप से जारी है, और भारत इस समझौते को समय पर पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
तकनीकी क्षेत्र में भारत की रणनीति
सूत्रों के मुताबिक, भारत तकनीकी क्षेत्र में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए अमेरिका से समान अवसरों की मांग कर रहा है। विशेष रूप से, भारत चाहता है कि उसे AI, सेमीकंडक्टर, और चिप प्रौद्योगिकी में वाशिंगटन के प्रमुख सहयोगियों जैसे जापान और दक्षिण कोरिया के समान पहुंच मिले। यह मांग भारत की 'मेक इन इंडिया' पहल को मजबूत करने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में उसकी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए महत्वपूर्ण है।
व्यापार घाटे को कम करने की कोशिश
2024 में भारत और अमेरिका के बीच 129.2 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ, जिसमें भारत को 45.7 बिलियन डॉलर का व्यापार अधिशेष प्राप्त था। अमेरिका इस व्यापार घाटे को कम करने के लिए भारत से अधिक बाजार पहुंच की मांग कर रहा है। भारत ने पहले ही कुछ अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ कम किए हैं, और वह इस समझौते के जरिए दोनों देशों के लिए पारस्परिक लाभ सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रहा है।
भविष्य की राह
भारत और अमेरिका का लक्ष्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 बिलियन डॉलर तक पहुंचाना है। दोनों देशों के बीच नियमित संवाद और क्षेत्र-विशिष्ट वार्ताएं इस लक्ष्य को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। भारत की तकनीकी क्षेत्र में बराबरी की मांग न केवल व्यापारिक, बल्कि रणनीतिक साझेदारी को भी मजबूत कर सकती है।
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