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जलवायु परिवर्तन को लेकर लगातार चल रही चर्चाओं के बीच संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) ने बुधवार को एक ऐतिहासिक टिप्पणी की है। इसके तहत कोर्ट ने कहा कि अगर कई भी देश पर्यावरण और जलवायु को बचाने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाते हैं, तो वे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना जा सकता है। ऐसे में इससे प्रभावित होने वाले देशों को मुआवजा पाने का हक हो सकता है। अदालत के अध्यक्ष यूजी इवसावा ने कहा कि जलवायु प्रणाली की सुरक्षा के लिए उचित कदम न उठाना एक गलत कृत्य हो सकता है। साथ ही उन्होंने जलवायु संकट को पूरी दुनिया के लिए खतरा बताया।
बता दें कि यह फैसला सभी 15 न्यायाधीशों ने एकमत से दिया है, और इसे अंतरराष्ट्रीय जलवायु कानून में बड़ा कदम माना जा रहा है। अदालत ने यह भी कहा कि स्वच्छ, स्वस्थ और स्थायी पर्यावरण एक मानव अधिकार है। इसका मतलब है कि आगे चलकर देश एक-दूसरे के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं।
पर्यावरणविदों ने किया फैसला का स्वागत
यह मामला प्रशांत महासागर के छोटे देश वानुअतु ने लाया था, जिसे 130 से अधिक देशों का समर्थन मिला। सभी देशों में से अमेरिका और चीन जैसे बड़े प्रदूषक भी इस अदालत के सदस्य हैं। जलवायु कार्यकर्ता अदालत के बाहर जश्न मनाते दिखे। इस दौरान उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि देश सचेत होकर कार्रवाई करें। वहीं वानुअतु के वकील ने कहा कि हमारे लोगों की जान खतरे में है और यह फैसला हमारी उम्मीदों से भी बेहतर है।
कोर्ट की टिप्पणी पर क्या बोले मानवधिकार कार्यकर्ता
वहीं मामले में पूर्व यूएन मानवाधिकार प्रमुख मैरी रॉबिनसन ने कहा कि आज हालात बदल गए हैं। यह फैसला हमें जलवायु संकट से निपटने और न्याय दिलाने के लिए एक नया कानूनी औजार देता है। वहीं प्रशांत द्वीप समूह के छात्र जलवायु परिवर्तन से लड़ रहे हैं विष्णु प्रसाद ने कहा कि इस फैसले ने जलवायु न्याय की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया है। जो देश इस संकट के लिए सबसे कम जिम्मेदार हैं उन्हें सुरक्षा और मुआवजा मिलना चाहिए।
अदालत से दो अहम सवालों पर मांगी गई थी राय
मीडिया रिपोर्ट की माने तो मामले में कोर्ट से अहम मामलों में राय मांगी गई थी। इसमें मुख्य मांगे थी कि देशों की कानूनी जिम्मेदारी क्या है जलवायु और पर्यावरण को मानवजनित गैसों से बचाने के लिए? साथ ही अगर सरकारें कोई कदम नहीं उठातीं, जिससे जलवायु को नुकसान पहुंचता है, तो उसके कानूनी परिणाम क्या होंगे? हालांकि कोर्ट की इस टिप्पणी पर अमेरिका और रूस जैसे बड़े तेल उत्पादक देश नाखुश हैं। ट्रंप प्रशासन ने फिर से अमेरिका को पेरिस जलवायु समझौते से बाहर कर दिया है और वैज्ञानिक आंकड़ों को छुपाने की कोशिशें भी तेज की हैं।
फैसले का असर COP30 और घरेलू मामलों पर पड़ सकता है
गौरतलब है कि विकासशील और विकसित देशों के बीच जलवायु परिवर्तन के मुआवजे को लेकर चल रही बातचीत के बीच कोर्ट का ये फैसला यूएन के आगामी जलवायु सम्मेलन सीओपी30 (बेलम, ब्राजील) में दबाव और चर्चा का बड़ा मुद्दा बन सकता है। साथ ही अब देश के नागरिक अपने ही देश की सरकार पर मुकदमा कर सकते हैं यदि वह जलवायु को बचाने में असफल रहती है।