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Khandwa Gangrape: भारत अब विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, जिसे सुनकर सभी की छाती चौड़ी हो रही है, लेकिन विकास के अन्य पैमानों पर यह देश शायद दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है। स्त्री की पूजा करने वाले देश में महिलाओं के ऊपर होने वाले अपराधों की वीभत्सता सीमा हर रोज आगे बढ़ रही है। साल 2012 में जब दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की घटना सामने आई थी तब देश में आक्रोश फैल गया था। देश के हर नागरिक की आत्मा कांप गई थी। पत्रकारों ने निर्भया को न्याय दिलाने की कसमें खा ली थी। मोमबत्तियों की रोशनी लोगों के दिलों में जल रही आग बनकर सड़कों पर जल रही थी। लगा था बस, अब और जान नहीं गवाएंगी महिलाएं। लेकिन समय की आंधी ने सारी मोमबत्तियां बुझा दी। लगभग 13 बाद पत्रकार अब यह तय नहीं कर पा रहे किस निर्भया के लिए न्याय मांगे, क्योंकि कई नारियां निर्भया बन चुकी हैं।
मध्य प्रदेश के खंडवा थाना क्षेत्र के रोशनी चौकी अंतर्गत एक 45 वर्षीय महिला के साथ हुई बर्बर गैंगरेप की घटना ने निर्भया कांड की वीभत्स यादें ताजा कर दी हैं। दरिंदों ने महिला को वहशीपन की सारी हदें पार करते हुए गंभीर रूप से घायल कर लथपथ हालत में छोड़ दिया। जब पड़ोस में रहने वाली बेटी ने मां को अर्धनग्न और बेहोश अवस्था में देखा, तो उसकी चीखों से सारा गांव सन्न रह गया।
महिला की हालत इतनी नाजुक थी कि उसकी बच्चादानी तक बाहर आ चुकी थी। पुलिस की प्रारंभिक जांच में संदेह जताया गया है कि दरिंदों ने उसके निजी अंगों में लकड़ी या लोहे की छड़ डाली। महिला को बचाया नहीं जा सका और अस्पताल ले जाते समय ही उसकी मौत हो गई। गांव के दो परिचित युवक – हरी पालवी और सुनील धुर्वे – को इस अमानवीय कृत्य के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
यह घटना केवल एक महिला की त्रासदी नहीं है, बल्कि हमारे समाज की उस सड़ांध की तस्वीर है, जिसमें महिलाओं को आज भी इंसान नहीं समझा जाता। भारत, जहां "नारी तू नारायणी" कहा जाता है, वहीं आज उसी नारी की अस्मिता को दरिंदे रोज़ तार-तार कर रहे हैं।
यह घटना सिर्फ खंडवा या मध्य प्रदेश की नहीं, यह पूरे भारत की अंतरात्मा को ललकारने वाला सच है, क्योंकि कानून का भय अब अपराधियों से ज्यादा पीड़ितों को रहता हैं। अमानवीय बलात्कार और हत्या जैसे अपराध के लिए फांसी की सजा किसी संप्रदाय या समूह को नहीं चाहिए, वरना अब तक किसी एक दल ने तो इसकी मांग की होती। हालांकि राजनीतिक गलियारों में भी इस घटना की गूंज सुनाई दी। लेकिन उतनी ही जितनी सुनी न जा सके। देखना होगा कि कब तक इस देश का कानून बलात्कारियों को जीवनदान देना बंद करेगा, तब तक देश की हर बेटी खतरे में है।